कार्तिक पूर्णिमा का पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसे कार्तिक माह के आखिरी दिन मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान, गंगा स्नान, व्रत, पूजा-अर्चना और दान आदि का विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा का पर्व 15 नवम्बर को मनाया जाएगा |
मान्यता है कि इस दिन किए गए पुण्य कार्यों का फल अन्य दिनों की तुलना में अधिक होता है। विशेषकर इस दिन गंगा नदी में स्नान और दीपदान को अत्यधिक पुण्यशाली माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन जो व्यक्ति गंगा स्नान करता है उसके सभी पाप धुल जाते हैं और उसे जन्म – जन्मांतर के बंधन से मुक्ति मिल मोक्ष की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा का महत्व विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है। एक कथा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन भगवान विष्णु के अवतारों में से एक प्रमुख अवतार मत्स्य अवतार का जन्म हुआ था, जो सृष्टि के विनाश और पुनर्सृजन की कथा से जुड़ा है।मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान विष्णु मत्स्य रूप में जल में विराजमान रहते हैं। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा पर जल में दीप प्रवाहित करने की बड़ी मान्यता है। वहीं एक दूसरी पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन सभी देवी और देवता काशी में आकर भगवान शिव की पूजा करते हैं और दीप जलाते हैं | इस वजह से इस दिन देव दीपावली मनाई जाती है | कथा के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करके देवों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी | इससे प्रसन्न होकर देवता गण काशी में दीपावली मनाते हैं जिसे देव दीपावली भी कहा जाता है | कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी पूजा का है अत्यंत महत्व :-
मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को माता तुलसी जी का विवाह भगवान के शालिग्राम रुप से हुआ था और पूर्णिमा तिथि को तुलसी जी का वैकुण्ठ में आगमन हुआ था। यही कारण है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन माता तुलसी जी की पूजा का खास महत्व है। कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही तुलसी जी का पृथ्वी पर भी आगमन हुआ था। इस दिन तुलसी के पौधे की जड़ों में गाय का दूध अर्पित कर , पूजन करने की भी मान्यता है |